परिवार सामाजिक संगठन का एक हिस्सा है। परिवार एक ऐसा समूह है जिसमें सदस्यों को रिश्तेदारी या शादी से जोड़ा जाता है। समाज परिवारों से ही बनता है। वंश के नियम, निवास, विरासत और प्राधिकार से ही परिवार या समाज के पितृवंशीय या मातृवंशीय होने का पता चलता है।
वर्तमान अंक
संपादकीय
पूर्वोत्तर नागरी साहित्य मंच की वार्षिक ई-पत्रिका ‘पूर्वोत्तर सृजन पत्रिका’ का दूसरा अंक आपके सामने पेश करते हुए बेहद खुशी हो रही है। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर भारत के वैविध्यपूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए यहाँ की छोटी-बड़ी भाषाओं में मौजूद मौखिक और लिखित लेखन को हिन्दी में अभिव्यक्त करने के उद्देश्य से इस ऑनलाइन पत्रिका की शुरूआत की गई है। प्रस्तुत अंक में प्रत्येक राज्य से संबंधित सामग्री संकलित करने का प्रयास किया गया है। इस क्रम में अरुणाचल से श्रीमती मोर्जुम लोयी और डॉ. जोराम आनिया ताना के श्री जुम्सी सीराम तथा न्यिशी जनजाति की लोककथाओं पर प्रकाशित लेख ध्यातव्य हैं। मिज़ोरम से डॉ. सी ललरमपना और डॉ. जेनी मलसोमदोङकिमी द्वारा लिखित ‘मिज़ोरम की जनजातियाँ और भाषाएँ’ व ‘मिज़ो वर्णमाला गीत’ शीर्षक लेख, त्रिपुरा से डॉ. बीना देबबर्मा का ‘त्रिपुरी जनजाति में गॉरिया पूजा’ नामक लेख, मणिपुर की ताङ्खुल जनजाति के समाज और संस्कृति पर रिनचुई होराम व लुजिकलु पानमेई का कबुई लोककथाओं पर व असम की कार्बी जनजाति में प्रचलित रामकथा साबिन आलुन पर आलेख भी पढ़े जाने योग्य हैं। डॉ. चुकी भूटिया का ‘शव काटने वाला आदमी में अभिव्यक्त मनपा समाज और संस्कृति’ आलेख इस अंक का विशेष आकर्षण है।
इनके अलावा डॉ. मिलन रानी जमातिया द्वारा लिखित ‘आमा और हमारा घर’ नामक आत्मकथांश, डाॅ रीतामणि वैश्य का संस्मरण ‘शांति बाइकें : यादों के झरोखे से ‘ डॉ. बिद्या दास की कहानी ‘लता’, डॉ. जीन एस. ड्खार की ‘प्रतियोगिता’ नामक कविता, टी हेलेन कीकोन द्वारा प्रस्तुत लोथा लोककथाएँ, एहसिंग खिएवताम द्वारा अनूदित खासी लोककथा, ख्रुत्सुलू दोजो द्वारा भेजी गई छोक्री (नागा) लोककथा भी इस अंक को प्रभावशाली बनाते हैं।
उम्मीद है, अंक आपको पसंद आएगा। आप सबके लेखों/रचनाओं/सुझावों और टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है।
तो, प्रस्तुत है ‘विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित’ वार्षिक हिंदी ई-पत्रिका ‘पूर्वोत्तर सृजन पत्रिका’ का दूसरा अंक-
संपादकत्रय
डॉ. रीतामणि वैश्य
डॉ. मिलनरानी जमातिया
प्रो. जय कौशल