समय को स्पर्श करता इतिहास
गरजता है यथार्थ के कानों में
छलकता है कितना नृतात्विक प्रयत्न
टूटने-गड़ने का सुख
कितने अधिकार अपने सिरहाने
'पूर्वोत्तर साहित्य-नागरी मंच' का प्रकाशन
समय को स्पर्श करता इतिहास
गरजता है यथार्थ के कानों में
छलकता है कितना नृतात्विक प्रयत्न
टूटने-गड़ने का सुख
कितने अधिकार अपने सिरहाने