तेरह वर्षीय, क्या तुम इतनी बड़ी हुई हो
कि अपनी आजीविका खुद कमा सको ?
कोई कहता है,
“अपनी कमाई से तुम मौज मना सकती
ग़रीबी एक इतिहास मात्र रह जाएगी ! ”
किन्तु वास्तविकता सत्य से दूर है
और तुम्हें ज्ञात नहीं
कि तुम्हें फुसलाया गया है I
'पूर्वोत्तर साहित्य-नागरी मंच' का प्रकाशन