2. कबुई आदिवासी समाज में लोक-संस्कृति का स्वरूप *रोज़ी कामेई

आज आदिवासी विमर्श ने साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान स्थापित तो कर लिया है, परन्तु उसमें पूर्वोत्तर के आदिवासी समाज का विमर्श अभी न के बराबर ही है। इसी विमर्श के बीच धीरे-धीरे आज पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी समाज कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में सफल हो रहे हैं।

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