7. नदराम *मूल (असमीया) : शरतचंद्र गोस्वामी, अनुवाद : संजीव मण्डल

1918 ई. के अक्टूबर महीने की रात नौ-दस बजे हम कुछ साथी खुले बरामदे में बैठकर ‘प्लान्शेट’ खेल रहे थे। महामारी ‘इन्फ्लूएंजा’ तब तक उतनी भयावह रूप में फैली नहीं थी; इसी कारण मौसम थोड़ा ठण्डा होने पर भी बाहर बैठने में डर या असुविधा का अनुभव नहीं हुआ।  

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