13. आमा और हमारा घर ✍ डॉ. मिलन रानी जमातिया

व्यक्ति के लिए यह जीवन और दुनिया दोनों एक रहस्य है। संवेदनशील व्यक्ति के लिए भी उनके परतों को खोल पाना असम्भव-सा है, फिर मुझ जैसी अनाड़ी के लिए जिसने कभी क्रिएटिव लेखन न किया हो, उसके लिए यह कार्य जुगनुओं के सहारे अंधेरे में राह तलाशने जैसा है। खैर, छोड़िए इन बातों को, दिल-दिमाग में यादों का मेला चलता रहता है, जहाँ सबकुछ है पर पहचान नहीं है, उसका रूप-स्वरूप मेले में ही विलीन हो जाता है, समय रहते इसे संवेदनशील लोगों के साथ बाँटा जाए तभी इसकी सार्थकता है। यही सोचकर ‘आमा’ की कुछ यादों को समेटकर उसे आप सबके साथ बाँटने जा रही हूँ।

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