10. लता ✍ बिद्या दास

“छि: माँ इससे बदबू आ रही है!”

एक काले रंग की थैली की ओर राधू के बढ़ते हाथ रुक गये। सिर घुमाकर उसने अपनी बेटी लता की ओर देखा।

कुछ जरूरी काम से मैं ब्लॉक के सर्किल ऑफिस जा रही थी। रास्ते से गुजरते समय कचड़े के ढेर के पास अचानक एक जानी-पहचानी आवाज सुनकर मैंने रिक्शे से झाँककर देखा- लता। अरे यह तो वही लता है जिसे मैंने कई बार स्कूल (आंगनबाड़ी केंद्र) के गेट से अंदर झांकते हुए देखा था। एक दिन पीछे से आकर मैंने उसे पकड़ा; बेचारी इतनी डर गई थी कि नाम पूछने पर भी नहीं बता पायी। इसके बाद भी उसे और एक-दो बार गेट के पास देखा था। रिक्शेवाले से धीरे चलाने को कहकर मैंने उनकी बात सुनने के लिए कान दिये।

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